रविवार, 19 मार्च 2017
शुक्रवार, 17 मार्च 2017
महाभारत में परिलक्षित भारतीय तत्वज्ञान
।।
श्री ।।
शोध
हेतु परियोजना की रूपरेखा
महाभारत
में परिलक्षित भारतीय तत्वज्ञान
भांडारकर
प्राच्यविद्या शोधसंस्था
के तत्वावधान में उपरोक्त
संशोधन ग्रंथ का कार्य
प्रस्तावित करने का औचित्य
है। संस्था की स्थापना सौ
वर्ष पूर्व सन १९१७ में हुई।
संस्था द्वारा संपादित "
Critical Edition of Mahabharat -- (महाभारत
ग्रंथ की क्रिटिकल एडिशन)
के Prologue
में ही प्रमुख
संपादक श्री व्ही. एस्.
सुखथनकर लिखते
हैं कि संस्थाने शैशवावस्था
में ही (१९१८)
में यह कार्य
हाथ में लिया (और
१९३३ में पूर्ण किया)
वे
लिखते हैं '' The rea ------ ------
-------- ---- ---- - -- ----- -----
महाभारत
की Critical editiar के
प्रकाशन ( १९३३)
के बाद जो दूसरा
काम हाथमें लिया वह Cultural
Indexing का काम
जो...... से
...... चला.
महाभारत
संसार का सर्वाधिक विस्तार
वाला ग्रंथ है। इसके रचयिता
महर्षि व्यास को वेदव्यास
नामसे भी संबोधित किया गया
है। मान्यता है कि वेदों की
एक लक्षसे भी अधिक ऋचाओंको
उनके स्वभावनुसार व विषयानुसार
चार वेदों मे अनुक्रमित करने
का कार्य वेदव्यासने ही किया
है । तो कोई आश्चर्य
नही कि वेदों मे निहित अधिकांश
विज्ञान , कथ्य
व तत्वज्ञान भी महाभारत में
प्रतिबिम्बित हो । सही अर्थेंमें
माना जा सकता है कि जहाँ
महाभारत मे ही तबतक वर्णित
तत्वचिंतन की सूत्रबूद्ध
और क्रत्तबुद्ध किया। साथ
ही कुछ नये अध्याय अपनी ओर
से उसमें जोडे ।
इसी
परम्परा को
आगे हढाते हुए
भांडारकर संस्था
उपरोक्त प्रकार के
अध्ययन की व्यवस्था करे
यह अनुपंद्यन केंद्र आगे
बढाये सर्वथोपरी ।
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दिनांक-
१६-०३-२०१७
विषय-
भांडारकर
संस्थेमार्फत महाभारतावरील
परियोजना (प्रोजेक्ट)
राबविण्याबाबत.
प्रति,
श्री
बहुलकर,
मानद
सचिव,
भांडारकर
प्राच्यविद्या शोध संस्था,
महोदय,
आपल्याशी
झालेल्या चर्चेप्रमाणे
भांडारकर संस्थेसाठी "महाभारतात
परिलक्षित भारतीय तत्वज्ञान
"
या
विषयावर मी विस्तृत अभ्यास
करावा असे स्थूलमानाने ठरले
व संस्थेला ही संकल्पना
मान्य असल्याचे
आपण मला कळविले आहे.
तरी
या परियोजनेबाबत विस्ताराने
हा प्रस्ताव देत आहे.
परियोजनेची
उद्दिष्टे आणि औचित्य -
वेगळे
टिप्पण
परियोजनेचे
नावं -
महाभारत
में परिलक्षित भारतीय तत्वज्ञान
परियोजनेची
भाषा -
हिंदी
परियोजनेचा
कालावधी-
३ वर्षे
(
सुमारे)
--
परियोजनेचे
फलित
१)
दर
सहा महिन्यातून एक विस्तृत
लेख (सुमारे
३००० ते ४००० शब्द संख्या)
ज्या
मधे या विषयाशी निगडित एकेका
पैलूचा उलगडा असेल
२)
तीन
वर्षाच्या कालावधीनंतर वरील
विषयावर एक दर्जेदार असे
पुस्तक
परियोजनेकामी
भांडारकर संस्थेचे दायित्व
--
या
परियोजनेवर काम
करण्यासाठी २ प्रोजेक्ट
असोसिएटसची नेमणूक
तंयांच्या
कामासाठी -१
संगणक
मासिक
नेमणुकीवर
असलेल्या वाहन-
चालकाचा
पगार फेब्रु २०१७ पासून
लागू
परियोजनेवरिल
अपेक्षित खर्च एकूण रू.
६०
लाख --
वेगळी
टिप्पणी
तरी
संस्थेच्या नियमाप्रमाणे
आवश्यक बाबींची पूर्तता करून
वरील परियोजनेस मान्यता
कळविणेत यावी.
दरम्यान
मी हा अभ्यास हाती घेतलेला
आहे हे आपण जाणताच.
कळावे,
आपली
स्नेहांकित,
लीना
मेहेंदळे
-------------------------------------------------------------------------------------------------बुधवार, 15 मार्च 2017
चतुरंगिनी सेना की छोटी इकाइयाँ
(नारायण प्रसादकी पोस्टसे)
चतुरंगिनी सेना के लिए प्रयुक्त 'अक्षौहिणी' शब्द से आप सभी लोग परिचित होंगे । इसमें 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 अश्व और 109350 पैदल होते थे । परन्तु चतुरंगिनी सेना के लिए अन्य प्रयुक्त छोटी इकाइयों का उल्लेख साधारणतः मिलता नहीं । यद्यपि इन सभी इकाइयों का उल्लेख पृथक्-पृथक् शब्दों के रूप में वामन आप्टे आदि के संस्कृत कोशों में मिलते हैं, परन्तु एकत्र सामान्यतः नहीं । निम्नलिखित पद्य मुझे बारहवीं शताब्दी के कन्नड कवि नागवर्मा प्रथम के वस्तुकोश में मिला ।
ऒंदुसामजमॊंदुतेर् मूऱश्वमय्दुकालाळ्गळुं पत्तियक्कुं ।
संद पत्ति मूऱागॆ सेनामुखं मूऱऱिं गुल्मं मूऱुगुल्म ॥
क्कॊंदुगणमवु मूऱु वाहिनि तत्रयं पृतनाख्यॆ पृतनॆगळ् मू ।
ऱॊंदितोऱॆ चमु मूऱुमनीकिनि पत्तनीकिनियक्षौहिणियॆनिक्कुं ॥ 327 ॥
इसके अनुसार -
पत्ति = सेना का सबसे छोटा दस्ता जिसमें 1 हाथी, 1 रथ, 3 अश्व और 5 पैदल होते थे ।
सेनामुख = 3 पत्ति
गुल्म = 3 सेनामुख
गण = 3 गुल्म
वाहिनी = 3 गण
पृतना = 3 वाहिनी
चमू = 3 पृतना
अनीकिनी = 3 चमू
अक्षौहिणी = 10 अनीकिनी
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चतुरंगिनी सेना के लिए प्रयुक्त 'अक्षौहिणी' शब्द से आप सभी लोग परिचित होंगे । इसमें 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 अश्व और 109350 पैदल होते थे । परन्तु चतुरंगिनी सेना के लिए अन्य प्रयुक्त छोटी इकाइयों का उल्लेख साधारणतः मिलता नहीं । यद्यपि इन सभी इकाइयों का उल्लेख पृथक्-पृथक् शब्दों के रूप में वामन आप्टे आदि के संस्कृत कोशों में मिलते हैं, परन्तु एकत्र सामान्यतः नहीं । निम्नलिखित पद्य मुझे बारहवीं शताब्दी के कन्नड कवि नागवर्मा प्रथम के वस्तुकोश में मिला ।
ऒंदुसामजमॊंदुतेर् मूऱश्वमय्दुकालाळ्गळुं पत्तियक्कुं ।
संद पत्ति मूऱागॆ सेनामुखं मूऱऱिं गुल्मं मूऱुगुल्म ॥
क्कॊंदुगणमवु मूऱु वाहिनि तत्रयं पृतनाख्यॆ पृतनॆगळ् मू ।
ऱॊंदितोऱॆ चमु मूऱुमनीकिनि पत्तनीकिनियक्षौहिणियॆनिक्कुं ॥ 327 ॥
इसके अनुसार -
पत्ति = सेना का सबसे छोटा दस्ता जिसमें 1 हाथी, 1 रथ, 3 अश्व और 5 पैदल होते थे ।
सेनामुख = 3 पत्ति
गुल्म = 3 सेनामुख
गण = 3 गुल्म
वाहिनी = 3 गण
पृतना = 3 वाहिनी
चमू = 3 पृतना
अनीकिनी = 3 चमू
अक्षौहिणी = 10 अनीकिनी
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तुलसीदास के रामचरितमानस में राम द्वारा समुद्र पर सेतु बान्धने पर रावण आश्चर्य से १० मुहों से समुद्र के १० नाम कहता है-
बान्ध्यो वननिधि (समुद्र) नीरनिधि जलधि पयोधि नदीश। सत्य तोयनिधि कम्पति (कम्= जल, पति =स्वामी) उदधि सिन्धु वारीश॥
वन-निधि में जो यात्रा करता है, वह वानर है। समुद्र पार सीता को खोजना, फिर रावण से युद्ध करना था, अतः श्रीराम ने वानरों से मैत्री की। वानर का अपभ्रंश बन्दर का अर्थ आज भी समुद्र का पत्तन (जहां लंगर = कलम्ब गिरता है) है। जैसे-बोर्निओ का बन्दर-श्रीभगवान्, गुजरात का पोरबन्दर, मुम्बई का बोरी-बन्दर (बोरी, पोर-दोनों पुर के अपभ्रंश हैं)-अरुण कुमार उपाध्याय, ९४३७०३४१७२
वन-निधि में जो यात्रा करता है, वह वानर है। समुद्र पार सीता को खोजना, फिर रावण से युद्ध करना था, अतः श्रीराम ने वानरों से मैत्री की। वानर का अपभ्रंश बन्दर का अर्थ आज भी समुद्र का पत्तन (जहां लंगर = कलम्ब गिरता है) है। जैसे-बोर्निओ का बन्दर-श्रीभगवान्, गुजरात का पोरबन्दर, मुम्बई का बोरी-बन्दर (बोरी, पोर-दोनों पुर के अपभ्रंश हैं)-अरुण कुमार उपाध्याय, ९४३७०३४१७२
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वन में जलवाची अर्थवत्ता है । मूलतः व वर्ण में जल, गति, शक्ति जैसे भाव समाहित हैं । संस्कृत वन से ही तमिल में वर्षा के लिए वाण है । मोनियर विलियम्स के कोश में भी वन का आशय पानी, सोता, झरना आदि हैं । रामविलास शर्मा ने भाषा और भारतीय समाज पुस्तक में बांग्ला के वन्या और वान/बान शब्दों का संदर्भ जलप्लावन के लिए दिया है ।
| ||||
अजित जी,
मेरी जानकारी के अनुसार वर्षा के लिए वान शब्द का प्रयोग तेलुगू भाषा में होता है। तमिल में वर्षा के लिए मळे शब्द प्रयुक्त होता है।
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