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मंगलवार, 30 अगस्त 2016

*।। श्री मधुराष्टकम् ।।*

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥१॥

*(हे कृष्ण !) आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥१॥*

वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥२॥

*आपका बोलना मधुर है, आपके चरित्र मधुर हैं, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका तिरछा खड़ा होना मधुर है, आपका चलना मधुर है, आपका घूमना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥२॥*

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥३॥

*आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाये हुए पुष्प मधुर हैं, आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं , आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है।*

गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥४॥

*आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है, आपका खाना मधुर है, आपका सोना मधुर है, आपका रूप मधुर है, आपका टीका मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥४॥*

करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥५॥

*आपके कार्य मधुर हैं, आपका तैरना मधुर है, आपका चोरी करना मधुर है, आपका प्यार करना मधुर है, आपके शब्द मधुर हैं, आपका शांत रहना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥५॥*

गुंजा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥६॥

*आपकी घुंघची मधुर है, आपकी माला मधुर है, आपकी यमुना मधुर है, उसकी लहरें मधुर हैं, उसका पानी मधुर है, उसके कमल मधुर हैं, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥६॥*

गोपी मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥७॥

*आपकी गोपियाँ मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है, आप उनके साथ मधुर हैं, आप उनके बिना मधुर हैं, आपका देखना मधुर है, आपकी शिष्टता मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥७॥*

गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥८॥

*आपके गोप मधुर हैं, आपकी गायें मधुर हैं, आपकी छड़ी मधुर है, आपकी सृष्टि मधुर है, आपका विनाश करना मधुर है, आपका वर देना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥८॥*

॥ श्रीकृष्ण जन्माष्टमीके पावनपर्व की शुभेच्छाए ॥

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

जन-गण-मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्यविधाता,
पंजाब सिंध गुजरात मराठा,
द्राविड़ उत्कल बंग,
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा,
उच्छल जलधि तरंग,
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशीष मांगे,
गाहे तव जय गाथा,
जन-गण मंगलदायक जय हे
भारत भाग्यविधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय-जय-जय-जय हे।
अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु, बौद्ध, शिख, जैन, पारसिक, मुसलमान, ख्रिस्टानी
पूरब-पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गांथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे
भारत भाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे
जय-जय-जय-जय हे
पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथा, जुग-जुग धावित जात्री,
हे चिर-सारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुःख-त्राता।
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत भाग्यविधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय-जय-जय-जय हे
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथे, पीङित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल, नतनयने अनिमेषे
दुःस्वप्ने आतंके, रक्खा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता।
जन-गण-दुःखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय-जय-जय-जय हे।।
रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि, पूर्ब-उदय-गिरि-भाले,
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण, नवजीवन रस ढाले,
तव करुणारुण रागे, निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा।
जय-जय-जय हे, जय राजेश्वर,
भारत भाग्यविधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।।

रविवार, 7 अगस्त 2016

रुद्र जप ऋ1.43

Rudra Jap रुद्र जप RV1.43

The seer of this hymn 1.43RV1.43 रु द्र
here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and is appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity. He personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.
In Vedic literature Rudra is variously described as ‘ The universal medicine man on earth.’ Due to his ability to destroy even the smallest disease causing germs, Rudra is recognized to be the most efficient killer among Devtas.
( Dewataas being mostly benevolent in their behavior.)
(There are other Rudra Sooktas that emphasise on appropriate foods also.)
(इस यज्ञ का विधान रोग निवृत्ति हेतु मनुष्यों, गौओं अश्वों इत्यादि के लिये किया जाता है। गोशाला में किये गए इस यज्ञ को शूल्गवां यज्ञ कहते हैं।)
अपने स्वास्थ्य लाभ के हेतु आहार, व्यवहार, उपचार के साथ परमेश्वर स्तुति व्यक्तिगत ,सामाजिक मानसिकता और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए इस यज्ञ को भी सम्पन्न करना हित कर होगा।

1.कद रुद्गाय प्रचेतसे मीळ्हुष्टमाय तव्यसे
वोचेम शंतमं हृदे 1-43-1
विद्वान पुरुष कब महान रोग नाशक रुद्र की हृदय के लिए सुखदायी शांति की प्रशंसा के स्तोत्र सुनाएंगे ?
For providing healthy disease free life, and to give comfort to our hearts( disease free hearts), wise men are guided by Rudras to tell about the appropriate actions to be taken and precautions to be observed for ensuring disease free healthy life at different times and situations.
2.यथा नो अदिति: करत् पश्वे नृभ्यो यथा गवे
यथा तोकाय रुद्रियम् ।।RV 1.43.2
(अदिति से यहां तात्पर्य सन्धिवेला के आदित्य से है.) संधि वेला का सूर्य राजा, रंक, पशुओं ,गौवों सब के अपनी संतान की तरह रुद्र रूप से रोग हरता है.
Wisdom of Rudra (about hygiene, sanitation and destroying effect of disease carrying germs pathogens ) is made available to preserve the health and wellbeing for all, like what a mother of new born desires, like what a keeper of cows desires, like what a king desires for his people, like what a farmer desires while working with soil on the farm.
3.यथा नो मित्रो वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति
यथा विश्वे सजोषस: ।। 1.43.3
प्राण उदान सूर्योदय के समय उसी प्रकार स्वास्थ्य प्रदान करते हैं जैसे विद्वान पुरुषों के उपदेश के अनुसार सूर्य की किरणों से उत्तम जल, प्रकाश संश्लेषण Photosynthesis- औषधीय रस से हरी शाक इत्यादि.
Where all natural elements freely present everywhere ( such as water& air) are friendly and provide disease free healthy environments, they by grace of Rudra render all our habitat safe and healthy.
4.गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्
तच्छंयो: सुम्नमीमहे ।। 1.43.4
अनिष्ट को दूर करा के सुख शांति के लिए ,विद्वान लोग स्वास्थ और उत्तम जल के औषध तत्वों के ज्ञान का उपदेश करें.

Rudra bless us through the gaathpatim traditional folklore to drink only clean health ensuring water that has medicinal qualities. Provide us with wisdom to avoid disease and maintain healthy environments for a peaceful society by jalaash bheshajam to turn waters in to medicines for our total wellbeing. (This is clear reference to jalaash being a preparation of what modern scientists of Biophysics call activated water. Ganga water is the naturally available activated water in India. Scientific observations have confirmed the Atharv Ved 6.24 observations that such activated water has medicinal properties.
Ganga water has very low surface tension values. Ganga water is highly alkaline and thus human body friendly and has very high pH normally above 8. Ganga water does not support growth of any culture, fungi etc. It is indeed a pity that modern man in his ignorance by releasing all human and industrial wastes of rapidly growing population and industry in to Ganga is causing immense loss to the natural disease resisting ability of Ganga water. Russian scientists have confirmed the Vedic observation that these natural healing and medicinal properties are developed in waters such as Ganga water by their rapid s, falls and frequent vortex movement. These medicinal values and agriculture plant growth ability of such Activated waters suffer greatly when such waters are stored behind artificial dams. It isalso to be noted that in Bio dynamic Agriculture promoted by Dr Rudolph Steiner in Europe for better disease resisting and growth promoting quality of organic preparations activated water is produced artificially by introducing rapid falls and vortex movement. )
5.: शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते
श्रेष्ठो देवानां वसु: ।। 1.43.5
जो सुवर्ण जैसा दीखता सूर्य है, वही देवताओं मे श्रेष्ठ और महान वीर्यादि तत्व प्रदान करता है.
Establish the ever dazzling golden sun to provide the naturally available health par excellence ensuring gifts. (Modern science confirms that solar light is the most sustainable sanitizer. Solar radiations only by photosynthesis are the precursor of Vitamin D, Essential Fatty Acids and Carotenoids the best natural antioxidants that ensure disease free healthy life. It is now realized that newer diseases such as Cardiac heart problems, diabetes, eye problems cataract, age related macular degeneration are spreading like epidemics in the community due to non availability of good cow milk and organic food )
6.शं नो करत्यर्वते सुगं मेषाय मेष्ये
नृभ्यो नारिभ्यो गवे ।। 1.43.6
Sun by its radiations provides similar beneficial effects to all the domestic animals the birds, sheep, goats, kings , community and cows with good health.
वही हमारे समस्त पशु, पक्षियों, राजा, रंक, नारी, गौ सब का रोग नष्ट कर के स्वास्थ्य प्रदान करता है.
उसी प्रकार उत्तम सूर्य ज्योति से सब भेड,बकरियां, राजा, प्रजा, गौएं सुख शांति प्रदाता हों.
7.अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम्
महि श्रवस्तुविनृम्णम् ।। 1.43.7
हमें यह ज्ञान होना चाहिये हमारी सेंकडों की संख्या के लिए वह एक अकेला तेजस्वी अन्न, औषधी, बल प्रदान करने में समर्थ है.

For the entire community ensure availability of excellent cow milk and cow enabled organic food to provide excellent intellects and peace loving temperaments.
8.मा : सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त
इन्दो वाजे भज ।। 1.43.8
हमारे ज्ञान मे विघ्न डालने वाले, और धन के लोभी हमें सतावें.
हमारा ज्ञान हमारा बल बढावे.
Develop the strength to defeat the antisocial, selfish, consumerist, non charitable, greedy, selfish life styles from community.
9. यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन् धामन्नृतस्य
मूर्धा नाभा सोम वेन आभूषन्ती: सोम वेद: ।। 1.43.9
अमृत और सत्य श्रेष्ठ ज्ञान सदैव हमारा मार्ग दर्शन कर के हमें उत्तम स्थान पर प्रतिष्ठित करें
Thus by establishing Vedas in the mind, temperament and life style of the society excellent peaceful world evolves.

रुद्र यज्ञ
( वैदिक यज्ञानुष्ठानविधि: -रमेश मुनि वानप्रस्थ आधारित )
अग्न्याधान
ॐ भूर्भुव: स्वर्द्यौ रिव भूम्ना पृथिवी वरिम्णा | तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठे
Sग्निमन्नादमन्नद्यायादधे स्वाहा || इदं अग्निर्वायु: सूर्या: देवेभ्य: इदन्न मम
ॐ उद्‌ बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च |
अस्मिनसधस्थे अध्युत्तरस्मिन्‌ विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ||
समिधादान
  1. ॐ अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यवस्व वर्धस्व चेद्ध वर्द्धय चास्मान्‌ प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा || इदमग्नये जातवेदसे इदन्न मम ||
  2. ॐ समिधाग्नि दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्‌ | आस्मिन्‌ हव्या जुहोतन स्वाहा || इदमग्नये इदन्न मम || ॐ सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीब्रं जुहोतन | अग्नये जातवेदसे स्वाहा || इदमग्नये जातवेदसे इदन्न मम ||
  3. ॐ तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि | बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा || इदमग्नयेSङ्गिरसे इदन्न मम ||
कामनापूर्ति मन्त्र:
  1. ॐ कामस्तग्रे समवर्तत मनसो रेत: प्रथमं यदासीत्‌ | सकाम कामेन बृहता सयोनी
रायस्पोषं यजमानाय धेहि स्वाहा || इदम्‌ कामाय इदन्न मम ||
  1. त्वं काम सहसासि प्रतिष्ठतो विभुर्विभावा सख आ सखीयते | त्वमुग्र: पृतनासु सासहि: सह ओजो यजमानाय धेहि स्वाहा || इदम्‌ कामाय इदन्न मम ||
  2. ॐ दुराच्च कमानाय प्रतिप्राणायाक्षये | अस्मा अशृण्वन्नाशा: कामेनजयन्त्स्व: स्वाहा || इदम कामाय इदन्न मम ||
  3. ॐ कामेन मा काम आगन्‌ हृदयाद्धृदयं परि | यदमीषामदो मनस्तदैतूप मामिह || स्वाहा|| इदम्‌ कामाय इदन्न मम ||
  4. ॐ यत्काम कामयमाना इदं कृण्मसि ते हवि: | तन्न: सर्वं समृध्यतामथैतस्य हविषो वीहि स्वाहा || इदम कामाय इदन्न मम ||
जल प्रोक्षण कर्म
ॐ अदितेSनुमन्यस्व-पश्चिम से उत्तर की ओर
ॐ अनुमते Sनुमन्यस्व पश्चिम से दक्षिण की ओर
ॐ सरस्वत्यनुमन्यस्व पष्चिम से पूर्व की ओर
ॐ देव सवित: प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय | दिव्यो गन्धर्व: केतपू : केत न: पुनातु वाचस्पतिर्वाचं न : स्वदतु ||

गणपति की विशिष्ट आहुतियां
(यह आहुतियां हव्य के हलुए,मोहनभोग के लड्डु से दी जाती हैं )
  1. ॐ प्रतूर्वन्नेह्यवक्रामन्नशस्ति रुद्रस्य गाणपत्यं मयोभूरेहि | उर्वन्तरिक्षं वीहि स्वस्तिगव्यूतिरभयानि कृण्वन्‌ पूष्णा सयुजा सह स्वाहा || इदम्‌ गणपतये इदन्न मम
  2. ॐ गणानां त्वा गणपतिँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिँ हवामहे वसो मम | जानि गर्भ धमा त्वमजासि गर्भधम्‌ स्वाहा || इदम्‌ गणपतये इदन्न मम ||
देवपत्नियों की विशिष्ठ आहुतियां
3 . ॐ देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु न: प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये | या: पार्थिवासो या
अपामसि व्रते ता नो देवी: सुह्वा: शर्मयच्छन्तु स्वाहा || इदम्‌ देवपत्न्य: देवीभ्य:
इदन्न मम ||
  1. ॐ उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्य ग्नाय्यश्विनी राट्‌ | आ रोदसी वरुणानी शृणोतु
व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम्‌ स्वाहा || इदम्‌ देवपत्न्य: देवीभ्य: इदन्न मम||
अग्निदेव को विशिष्ट आहुति
  1. ॐ त्वं नो अग्ने अग्निभिर्ब्रह्मा यज्ञं च वर्धय | त्वं नो देव दातवे रयि दानाय चोदय स्वाहा || इदम- अग्नये इदन्न मम ||





रुद्र देवता की विशिष्ठ आहुतियां
1. शण्डामर्का उपवीरः शौडिकेय ऽउलूखलः ।
मलिम्लुचो द्रोणासश्च्यवनो नश्यतादितः स्वाहा ।। इदं शण्डादिभ्यः इदन्न मम्
2. ॐ आलिखन्ननिमिषः किंवदन्त उपश्रुतिः।
हर्यक्षः कुम्भीशत्रुः पात्रपाणिर्नृ मणिर्हन्त्रीमुखः सर्षपारुणश्च्यवनो नश्यतादितः स्वाहा।। इदमालिखन्ननिमिषाय किंवदद्भ्यः उपश्रुतये हर्यक्षाय कुम्भीशत्रवे पात्र पाणये नृमणये हन्त्रीमुखाय सर्षपारुणाय च्यवनाय, इदन्न मम्
3. इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मती:
यथा शमसद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् स्वाहा || इदम्‌ रुद्रायइदन्नमम
4. मृळा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते
यच्छं योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुद्र प्रणीतिषु स्वाहा ।। इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
5. अश्याम ते सुमतिं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव रुद्र मीढ्व:
सुम्नायन्निद् विशो अस्माकमा चरारिष्टवीरा जुहवाम ते हवि: स्वाहा।। इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
6. त्वेषं वयं रुद्रं यज्ञसाधं वंकुं कविमवसे नि ह्वयामहे
आरे अस्मद् दैव्यं हेळो अस्यतु सुमतिमिद् वयमस्या वृणीमहे स्वाहा ।। इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
7. दिवो वराहमरुषं कपर्दिनं त्वेषं रूपं नमसा नि ह्वयामहे
हस्ते बिभ्रद् भेषजा वार्याणि शर्म वर्म च्छर्दिरस्मभ्यं यंसत् स्वाहा।। इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
8. इदं पित्रे मरुतामुच्यते वच: स्वादो: स्वादीयो रुद्राय वर्धनं
रास्वा नो अमृत मर्तभोजनं त्मने तोकाय तनयाय मृळ स्वाहा ।। इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
9. मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा उक्षन्तमुत मा उक्षितम्
मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा : प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष:स्वाहा | | इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
10. मा स्तोके तनये मा आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिष:
वीरान् मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्त: सदमित् त्वा हवामहे स्वाहा | | इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
11. उप ते स्तोमान् पशुपा इवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे
भद्रा हि ते सुमतिर्मृळयत्तमाथा वयमव इत् ते वृणीमहे स्वाहा | | इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
12. आरे ते गोघ्नमुत पूरुषघ्नं क्षयद्वीर सुम्नमस्मे ते अस्तु
मृळा नो अधि ब्रूहि देवाधा नो शर्म यच्छ द्विबर्हा: स्वाहा | | इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
13. अवोचाम नमो अस्मा अवस्यव: शृणोतु नो हवं रुद्रो मरुत्वान्
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदिति: सिन्धु: पृथिवी 11उत द्यौ: स्वाहा || इदम्‌ रुद्राय इदन्न मम
सूर्य ज्योति .... अग्निर्ज्योति....यज्ञ

पूर्णाहुति मन्त्र
ॐपूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरापत |
वस्नेव विक्रीणावहाSइषमूर्जँ शतक्रतो स्वाहा || इदम्‌ यज्ञाय इदन्न मम

ॐ संशितं मे ब्रह्म संशितं वीर्य बलम्‌ | संशितं क्षत्रं जिष्णु यस्याहमस्मि पुरोहित: ||
ॐ पुनस्त्वा SSदित्या रुद्रा वसव: समिन्धतां पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञै: |
घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व सत्या: सन्तु यजमानस्य कामा: स्वाहा ||
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