शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
संस्कृत भाषा अतुलनीय
अंग्रेजी में A QUICK BROWN FOX JUMPS OVER THE LAZY DOG एक प्रसिद्ध वाक्य है जिसका बार -बार अभ्यास टाइपिंग सीखने वाले करते थे।
अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर उसमें समाहित हैं. किन्तु कुछ कमियाँ भी हैं या यों कहिये कि कुछ कलाकारियाँ किसी अंग्रेजी वाक्य से हो नहीं सकतीं।
1) अंग्रेजी में 26 अक्षर हैं और यहाँ जबरन 33 का उपयोग करना पड़ा है।
चार O हैं और A,E,U,R की दो-दो पुनरावृत्तियाँ हैं।
2) अक्षरों का ABCD.. यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा है। सारे अक्षर तर्कहीन बेतुके ढंग से अस्तव्यस्त हैं।
अब संस्कृत में चमत्कार देखिये!
क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।
अर्थात्-
पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनेवाला कौन है?
राजा मय जिसे शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।
आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस छोटे से श्लोक में आ जाते हैं।
इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है।
एक ही अक्षर का अद्भुत अर्थ विस्तार.
माघ कवि ने "शिशुपालवधम्" महाकाव्य में केवल "भ" और "र", दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है-
भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।
भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।
अर्थात्
धरा को भी वजन लगे ऐसे वजनदार वाद्य यंत्र जैसी आवाज निकालने वाले और मेघ जैसे काले निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया।
किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल "न" व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया गया है और गजब का काव्य कौशल प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने कहा है-
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।
अर्थ-
जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है।
ऐसे ही जो अपने से दुर्बल को घायल करता है वह भी मनुष्य नहीं हैः
घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।
अब हम एक ऐसा उदाहरण देखेंगे जिसमे महायमक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
इस श्लोक में चार पद हैं, बिलकुल एक जैसे, किन्तु सबके अर्थ अलग-अलग हैं।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः ।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः ॥
अर्थात्
अर्जुन के असंख्य बाण सर्वत्र व्याप्त हो गये जिसने शंकर के बाण खण्डित कर दिये।
इस प्रकार अर्जुन के रण कौशल को देखकर दानवों को मारने वाले शंकर के गण आश्चर्य में पड़ गये।
शंकर और तपस्वी अर्जुन के युद्ध को देखने के लिए शंकर के भक्त आकाश में आ पहुँचे।
संस्कृत की विशेषता है कि संधि की सहायता से इसमें कितने भी लम्बे शब्द बनाये जा सकते हैं। ऐसा ही एक शब्द है जिसमें योजक की सहायता से अलग &अलग शब्दों को जोड़कर 431 अक्षरों का एक ही शब्द बनाया गया है। यह न केवल संस्कृत अपितु किसी भी साहित्य का सबसे लम्बा शब्द है।
संस्कृत में यह श्लोक पाई (π) का मान दशमलव के 31 स्थानों तक शुद्ध कर देता है।
गोपीभाग्यमधुव्रात-श्रुग्ङिशोदधिसन्धिग।
खलजीवितखाताव गलहालारसंधर।।
pi = 3.1415926535897932384626433832792
13/14
श्रृंखला समाप्त करने से पहले भगवान
श्रीकृष्ण की महिमा का गान करने वाला एक श्लोक जिसकी रचना भी एक ही अक्षर से की गयी है।
दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः॥
यहाँ पर मैंने बहुत ही कम उदाहरण लिये हैं किन्तु ऐसे और इनसे भी कहीं प्रभावशाली उल्लेख संस्कृत साहित्य में असंख्य बार आते हैंः
कभी इस बहस में न पड़ें कि संस्कृत अमुक भाषा जैसा कर सकती है या नहीं।
बस यह जान लें कि जो संस्कृत कर सकती है, वह कहीं किसी और भाषा में नहीं हो सकता।
अपने देश, भाषा तथा संस्कृति पर विश्वास रखिये। भारतीय संस्कृति जड़ है जिससे बाकी सभी शाखायें निकली हैं।
उन शाखाओं को ऊपर से देखने पर जड़ें नहीं दिखतीं।
कष्ट यह है कि हममें से भी अधिकांशतः दूसरी आधुनिक संस्कृतियों के प्रभाव में आकर जड़ों को नहीं देख रहे हैं।
संस्कृत से अधिक स्पष्ट और कोई भाषा न होने के कारण अमेरिका की नासा ने अपने कंप्यूटरों की भाषा संस्कृत ही रखी है।
इसमें किसी भ्रांति की कोई संभावना नहीं है।
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मंगलवार, 21 जुलाई 2020
वायुपुराणवर्णित ३३ कल्प
बुधवार, 1 जुलाई 2020
निर्वाण-षटकम् देव्यपराधक्षमापन स्तोत्रम्--चिदानन्दरूपं शिवोहम् शिवोहम्
न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु:
चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||1||
न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||2||
मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||3||
न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||4||
पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||5||
विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||6||
देव्यपराधक्षमापन स्तोत्रम् -
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न मत्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥१॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥२॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥३॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥४॥
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥५॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥६॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥७॥
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ॥८॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥९॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥१०॥
जगदम्ब विचित्रमत्र किं
परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।
अपराधपरम्परापरं
न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥११॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥१२॥