भारती-भाषासेतु
आवाहन
नमस्कार
मित्रों,
हम
इस भारती-भाषासेतु
प्रकल्पके
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तथा फेसबुक पन्नेपर आपका सहयोग
चाहते हैं।
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आरंभमे
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होना है। और
हां,
आरंभमें
हमारी गति व प्रगति धीमी होगी।
अतः धैर्य भी
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है।
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अपनी
भाषामें कोई भी ३ शब्दोंवाला
वाक्य यहाँ स्रोतके खानेमें
लिखें।
२)
संभव
हो तो उसे देवनागरी लिपीमे
भी लिखें और
३)
संभव
हो तो अपने मोबाईलपर उस वाक्यको
रेकॉर्ड करके
वह
ऑडियो फाइल हमें भेजें।
४)
संभव
हो तो उसका अनुवाद संस्कृत
या हिंदी या किसी भी अन्य
भाषामें लिखें।
हम
इसे अपने पोर्टलपर स्थानापन्न
करेंगे। और
चल पडेगी हमारे प्रकल्पकी
नैया।
यह
प्रकल्प क्या है और क्यों है
सारी
भारतीय भाषाएँ कई दृष्टियोंसे
एकात्म हैं। उनकी वर्णमाला,
व्यंजनाक्षरोंमें
स्वर जोडनेकी प्रक्रिया,
वाक्यरचनाका
व्याकरण,
वाक्यमें
शब्दोंकी स्थितिमें एकरूपता,
शब्दोंकी
समानता,
शब्दोंके
तद्जन्य रूप बनाने के नियम,
आदि
कई बातें समानता संजोये हुए
हैं। सबसे महत्व की बात है कि
शब्दोंसे उत्पन्न होनेवाले
भाव नितांत भारतीय होने के
कारण,
सभी
भाषाओंमें एकसा प्रभाव और
एकसी अनुभूति उत्पन्न करते
हैं। इसीका उदाहरण है कि एक
जयहिंद का नारा पूरे भारतको
जागृत करनेके लिये समर्थ था।
भारती
भाषासेतुके माध्यमसे हमारा
प्रयास है कि यह एकात्मता अधिक
सुदृढ हो और ज्ञानप्रसारके
लिये अधिक उपयोगी हो। हमारा
पहला प्रयास यह है कि हम एक
भाषाकी ग्रंथसंपदा दूसरी
भाषामें वेगपूर्वक अनुवादित
कर सकें,
और
इस कामके लिये ऐसे संगणक
प्रणालीका विकास करे जिसमें
किसी भारतीय भाषाको ही माध्यमभाषा
बनाया जाये।
कई
वर्ष पूर्
सीडॅकने अंगरेजीको माध्यमभाषा
बनाकर कुछ असफल प्रयास करके
फिर भारतीय
भाषाई अनुवादका
प्रोजेक्ट बंद कर दिया।
दूसरा प्रयास गूगलकी ओरसे हो
रहा है और वह भी उतना सार्थक
नही है जितना वे चाहते थे।
गूगल भी अंगरेजीको ही माध्यमभाषाके
रूपमें प्रयुक्त करता है और
मेरे विचारमें यही सबसे बडी
कारण है उनकी धीमी व असंतोषजनक
परिस्थितिका।
इस
संबंधमें एक बार मेरी गूगलके
एक सीनियर अधिकारीसे चर्चा
हुई। मैंने बडे उत्साहसे बताया
आरंभ किया कि भारतीय भाषाओंकी
वाक्यरचनाका कैसी होती है ओर
वही हर भाषामें होती है। उदाहरण
मैं
पाठशालाको जाती हूँ
का मराठी अनुवाद मी
पाठशाळेला जाते
या बंगाली अनुवाद आमी
पाठशालाते जाच्ची ।
तीनोंमें
कर्ता,
कर्म
और अन्तमें क्रियापद यही क्रम
है। अतः शब्दशः अनुवाद करनेसे
काम हो जाता है। लेकिन अंगरेजी
अनुवाद आई
गो टू स्कूल
करनेमें दो भिन्नताएँ हैं।
यहाँ टू
स्कूल
में कर्मपद स्कूल
से पहले एक शब्द लगा है टू
जो अंगरेजीमें प्रिपोझिशन
कहलाता है। प्रिपोझिशन अर्थात
कर्मपदसे पहले लगनेवाला शब्द।
भारतीय भाषाओंमें यह पहले
नही वरन बादमें लगते हैं।
इन्हें हम प्रत्यय कहते हैं
और ये कर्मपदके शब्दसे जुडकर
रहते हैं जैसे पाठशालाको
(हिंदी)
पाठशाळेला
(मराठी)
पाठशालाते(बंगाली)
या
पाठशालाम् (संस्कृत)।
अर्थात भारतीय भाषाओंमें
प्रत्ययोंका अस्तित्व कर्मपदके
(
या
कर्तापदके,
या
क्रियापदके)
अस्तित्वसे
भिन्न नही होता। दूसरी
भिन्नता है वाक्यमें शब्दक्रम
की। अंगरेजी क्रम कर्ता,
क्रिया,
प्रिपोझिशन
और अन्ततः कर्म इस प्रकार है।
इसलिये यदि मैंने मराठीसे
हिंदी अनुवाद हेतु एक संगणकप्रणाली
बनानी चाही तो उसे
मराठी-अंगरेजी-हिंदी
की अपेक्षा मराठी-संस्कृत-हिंदी
प्रणाली बनाना कई गुना अधिक
सरल है।
इसपर
गूगल महाशय मंद मंद मुस्काये।
एक आँख दबाकर मुझसे पूछा -
इसमें
गूगलका क्या फायदा?
मैं
भौंचक। मैंने कहा आप बडे
वेगपूर्वक भाषाई अनुवादका
टूल (प्रणाली)
बाजारमे
उत्तर पायेंगे और पैसे कमायेंगे।
उन्होंने सिर हिलाया। नही,
ऐसा
करनेपर भी हम भारतके मार्केटसे
उतना पैसा नही कमा पायेंगे
जितना आप सोचती हैं। भारत इस
मामलेमें एक पूअर मार्केट
है। मैं और भी हैरान हुई। मैंने
पूछा -
तो
अभी आप जो अंगरेजीको माध्यमभाषा
बनाकर अनुवाद कर रहे हैं अर्थात
मराठी-अंगरेजी-हिंदी
इस कारण आपका वेग भी घट रहा है
और अनुवाद भी संतोषजनक नही
है,
उसमें
तो आपको उतने भी पैसे नही
मिलनेवाले। फिर आप यह काम
क्यों कर रहे हैं ?
वह
और भी गूढ मुस्काये। फिर कहा
अंग्रेजीको इस लूपमें रखकर
हम अपना अंगरेजीका
ज्ञानभांडार बढाते हैं।
मराठीमें जो उपलब्ध है,
वह
भी हमें अनायास मिलेगा और
कन्नड,
तमिल,
बंगाली
इत्यादिमें जो है,
वह
भी। साथ ही एक मराठी अभिव्यक्ति
कैसी होती है। उसके कण्ट्रास्टमें
बंगाली अभिव्यक्ति कैसी होती
है,
तमिल
कैसी होती है इत्यादी बातें
हम जान पायेंगे। उन सबके
प्रांतीय,
अभिनिवेशोंका
डेटा बेस हमारे पास जमा होता
चलता है। ये दो फायदे हैं जिनके
लिये गूगल इस अनुवाद प्रकल्पको
चलाता है। लेकिन इसमें अंगरेजीका
माध्यम भाषा बना रहना ही हमारी
अहमियत या हमारी प्राथमिकता
है।
मुझे
फिर एक बार भारतियोंकी हतबलता
का एहसास हुआ। गूगलके ५० से
६० प्रतिशत कर्मचारी भारतीय
हैं। उन्हींके श्रम और
बुद्धिमत्ताका उपयोग करते
हुए
गूगल हमारा ज्ञान भांडार अपने
पास संग्रहित करेगा समय
आनेपर हमें बेचेगा
और हममें इतनी दूरदृष्टि भी
नही अथवा इतना हौसला भी नही
कि इस कामको अपने तरीकेसे अपने
देशकी प्रतिभाओंको आवाहन कर
संपन्न करा सकें। और अपने
ज्ञानखजानेको इस प्रकार
सरलतापूर्वक
किसी अन्यको समर्पित होनेसे
रोक सकें।
जो
भी हो,
अभी
तो यही प्राथमिक उद्देश्य है
कि हम बिचौली या माध्यमभाषाके
रूपमें अंगरेजीका प्रयोग न
कर अपनी ही किसी भाषाको
माध्यम-भाषा
बनाकर उसके आधारपर संगणक
अनुवाद प्रणाली बनायें। इसके
लिये हमने संस्कृतको माध्यम
भाषाके रूपमें चुना हैं।
संस्कृत
भाषाको क्यों चुना ?
क्योंकि
सभी देशी भाषाएँ संस्कृतोद्भव
होनेके कारण उनकी शब्दावलीको
संस्कृतमाध्यमसे समझाना सरल
है। एक कठिनाई है कि संस्कृतमें
शब्दोंका रूप लिंग,
वचन,
पुरूषके
अनुसार बदलता है जब कि क्रियापदोंका
रूप काल,
वचन,
पुरूषके
अनुरूप बदलता है परन्तु
लिंगानुरूप नही। कई भाषाओंमें
क्रियापदोंका रूप भी लिंगानुरूप
बदलता है,
जिसके
लिये संगणक प्रणालीमें कुछ
अधिक काम करना पडेगा। फिर भी
संस्कृतकी सबसे बडी सुविधा
यह है कि इसे पूरे देशमें
पढा-समझा
जाता है अतः अधिक लोग इस कार्यमें
जुड सकते हैं।
आपको
सहयोगमें क्या करना है?
आरंभमे
एकबार हमारे साथ लॉग इन होना
है। और
हमारा वाक्य-भंडार
बढाना है।
इस
भंडारणके माध्यमसे हम संगणकको
अनुवादका शास्त्र और कला दोनों
सिखा पायेंगे ऐसी अभीकी सोच
है।
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