Translate

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

वायुपुराणवर्णित ३३ कल्प


वराह कल्प कालमें वायुपुराण कहा गया।

पहले मुनि ने कल्प निरूपण करते हुए कहा कि दो हजार आठ सौ करोड़ तथा बासठ करोड़ रात्तर नियुत कल्पार्द्ध की वर्ष संख्या कही गई है। इसका पूर्ण भाग वर्ष परिमाण कहा गया है, एक सौ अठहत्तर करोड़ दो लाख नब्बे नियुत के मानुष परिणाम से वैवस्वतः मन्वन्तर होता है।
ब्रह्मा के युग और वर्ष के बारे में बताते हुए वायु ने कहा कि ब्रह्मा का वर्ष एक हजार युग का होता है और आठ हजार वर्षों का एक ब्रह्मयुग, एक हजार ब्रह्मयुगोंका एक सवन और दो हजार सवनोंको ब्रह्माका त्रिवृत्त होता है।
७वाँ -- पद्मकल्प
सृष्टि से पहले भव कल्प हुआ, दूसरा भू, फिर तप:,
चौथा, पांचवां, छठा, सातवां, आठवां, नवां, दसवां, ग्यारहवां, बारहवां, तेरहवां, चौदहवां, कल्प विस्तार क्रमशः भव्, रम्भा, ऋतु, वह्मि, हण्यवाहन, सावित्री, भुवः, उशिक, कुशिक, गान्धार, वृषभ और षड़ज नाम से हुए।--some confusion as there are 12 names for 11 kalpa (4th to 14th) . What about 15 th and 16 th ???
सत्रहवां कल्प मार्जालिय,
अठारहवां मध्यम,
उन्नीसवां वैराजक हुआ। इसमें ब्रह्मा के पुत्र वैराज मुनि हुए। इनके दधीचि (= वैराजक) नाम का धर्मात्मा पुत्र हुआ।
बीसवां कल्प निषाद कल्प हुआ। प्रजापति ने उस निषाद को देखकर सृष्टि कर्म से हाथ रोक लिया। निषाद भी तपस्या करने लगा। तब इक्कीसवें पंचम कल्प में ब्रह्मा के यहां प्राण, अपान, समान, उदान तथा ध्यान नामक पांच मानस पुत्र हुए। इन पांचों के पंचम गान के कारण ही इस कल्प का नाम पंचम कल्प पड़ा।
बाईसवें कल्प का नाम मेघवाहन हुआ। इसमें विष्णु ने मेघरूप महेश्वर को दिव्य सहस्र वर्ष तक धारण किया।
तेईसवां कल्प चिन्तक कल्प हुआ। इसमें प्रजापति पुत्रीकी चिन्तक के साथ चिति नाम की पुत्री हुई।
चौबीसवां, आकूति कल्प हुआ। इसमें आकूत और आकूति मिथुन उत्पन्न हुए।
पच्चीसवां विज्ञाति कल्प हुआ। इसमें विज्ञाति के साथ विज्ञात जुड़वा उत्पन्न हुए। सृष्टि की इच्छा से ब्रह्मा को शीघ्र ही सब कुछ ज्ञात हो गया।
छब्बीसवें कल्प का नाम मन हुआ। इसमें शंकरी देवी ने एक मिथुन उत्पन्न किया। यह कल्प उस समय हुआ जब ब्रह्मा प्रजा की सम्भावना की कल्पना कर रहे थे।
सत्ताईसवां कल्प भाव कहलाता है। परमेष्ठी ब्रह्मा परमात्मा का ध्यान कर रहे थे कि उनका ज्योति मण्डल अग्नि रूप में पृथ्वी लोक और देवलोक में व्याप्त होकर प्रदीप्त हो उठा। एक हजार वर्ष बाद यह मण्डल सूर्य मण्डल में परिणित हुआ। ब्रह्मा ने उसको देखा, उससे समस्त योग और मन्त्र उत्पन्न हुए। इसलिए उस कल्प का नाम दर्श पड़ा।
अठाईसवां वृद्ध कल्प कहलाया। सृष्टि की कामना करने वाले ब्रह्मा के अन्तःकरण से साम उद्भूत हुए।
उनतीसवें कल्प में श्वेतलोहित हुआ। इससे एक परम तेजस्वी कुमार उत्पन्न हुआ, ब्रह्मा ने उसे महेश्वर समझा।
तीसवां रक्त कल्प हुआ, जिसमें महातेजस्वी रक्त ने रक्त वर्ण प्राप्त किया। ध्यान योग से ब्रह्मा ने जाना कि ये स्वयं विश्वेश्वर हैं। उनकी आराधना की और उस ब्रह्मस्वरूप का चिंतन करने लगे। महातपस्वी ने ब्रह्मा से कहा कि हे पितामह जिस लिए तुमने पुत्र कामना से मेरा ध्यान किया है, तुम प्रत्येक कल्प में परम ध्यान के द्वारा मुझे भली-भांति जानोगे। इसके पश्चात उस महादेव से चार महात्मा कुमार उत्पन्न हुए। उन्होंने वामदेव सम्बन्धी ज्ञान का अभ्यास किया और पुनः उसी रुद्र महादेव में विलीन हो गए।
इकत्तीसवां कल्प पीतवासा कहलाता है। इसमें जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह पीत चन्दन से युक्त पीत यज्ञोपवीत धारी था। ध्यान मग्न ब्रह्मा ने उस महेश्वर के मुख से उत्पन्न एक विचित्र गाय को देखा। भविष्य में इसी का नाम रुद्राणी हुआ। पुत्र की इच्छा वाले ध्यान प्रण ब्रह्मा को वह महेश्वरी गाय प्रदान कर दी।
इसके पश्चात् बत्तीसवां सित नामका कल्प हुआ। उस समय दिव्य सहस्र वर्ष तक जगत् स्कार्णवत रूप में था। ब्रह्मा दुखी होकर सृष्टि के लिए चिन्तन करने लगे, तब उनका वर्ण काला हो गया। इसी से कृष्ण वर्ण युवक उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उसका ध्यान किया, जिसके प्रभाव से महात्मा स्वरूप चार युवक उत्पन्न हुए। योग सम्पन्न उन कुमारों ने मन ही मन शिव का ध्यान करते हुए विश्वेश्वर के निर्मल और निर्गुण स्थान में प्रवेश किया।
तैंत्तीसवां विश्व रूप नाम कल्प हुआ। इसमें महानाद करने वाली विश्व रूपा सरस्वती उत्पन्न हुई। तब ब्रह्मा ने प्रणत होकर महेश्वर की स्तुति की और कहा-आपका जो विश्वगामी, विश्वेश्वर, विश्व रूप है, उसे हम जानने की इच्छा रखते हैं। यह परमेश्वर कौन है? यह भगवती कौन है? जो चार पैर, चार मुख, चार सींग, चार दांत, चार स्तन, चार हाथ, चार आंख वाली विश्व रूपा है? इसका नाम क्या है? इसकी आत्मा और रूप कैसे हैं? इसका पराक्रम और कर्म कैसे हैं? महेश्वर ने ब्रह्मा से यह सुनकर कहा- यह जो कल्प बीत रहा है, विश्व रूप कल्प है। भवआदि देवगण इस कल्प के छत्तीसवें गण हैं। जब से आपने इस ब्रह्मपद को प्राप्त किया है, तब से यह तैैंतीसवां कल्प चल रहा है।
शिवके अष्ट नाम यों हैं - रुद्र भव शर्व पशुपति ईशान भीम उग्र महादेव