जानें संस्कृत पढें संस्कृत
पाठ 1
जानें संस्कृत पढें संस्कृत में सभी सदस्योंका स्वागत है। आइये बात करें स्वागत की।
आगत = आया हुआ। परन्तु आगतम् = आगमन अर्थात किसी का आना । उसमें सु लगा दिया जो अच्छाईका द्योतक है। तो बन गया सु + आगतम् अर्थात स्वागतम्। और अब तो लोग उसमें एक और सु जोडने लगे ताकि और अच्छा हो। इस प्रकार सुस्वागतम् कहने का चलन बन गया।
वैसे आगत भी बना है गत में आ जोडकर। गत अर्थात जो गया । विगत का अर्थ है वह काल जो बीत गया। परंपरागत अर्थात जो परंपराके कारण चल रहा है। अभ्यागत का अर्थ है विशिष्टता के साथ आया हुआ (अभि + आगत = अभ्यागत)।
पाठ 2
संस्कृत सीखनेकी एक अति सरल युक्ति है। देखिये ये पंक्ति -- ११, २१, ३१, ४१, ५१ .. हर बार इकाइ में १ है और हम इसका अर्थ समझते हैं और जानते हैं कि इसे एक तरीकेसे पढा और समझा जाता है -- इग्यारह, इक्कीस, इकतीस, इकतालिस ... । ये दूसरी पंक्ति देखिये -- ९१, ९२, ९३, ९४... यहाँ दशक का अंक एक ही है। इसका भी अर्थ हम समझ लेते हैं.
इसी प्रकार संस्कृत में अंत में कुछ प्रत्यय लगते हैं और आरंभ में कुछ उपसर्ग । ऐसे शब्द मिल जायें तो उनके अर्थ और छंदात्मकता खूब उपयोग किया जा सकता है। ऐसा सर्वाधिक उपयोग करनेवाली भाषा है संस्कृत ।
पिछले पाठ में मैंने अंतमें आगत या गत लगाकर बननेवाले कुछ शब्द गिनाये थे। आज देखते हां क्रम से संबंधित ये शब्द -- क्रम, अनुक्रम, वर्णक्रम, विक्रम, पराक्रम, कार्यक्रम, आक्रमण, संक्रमण। ये सभी शब्द भारतकी हर भाषामें प्रयुक्त होते हैं।
तो सोचिये तीन बातें -- क्या आप इनमेंसे हर शब्द का अर्थ उसकी छटाके साथ पूर्णतासे जानते हैं और उपयोग में लाते हैं -- किसी श्बद से उलझ गये हों तो यहाँ पूछ लें।
दूसरी बात -- इतने संस्कृत शब्द जानते हुए हम क्यों न जनगणना में लिखवायें कि हमारी ज्ञात भाषाओंमें एक संस्कृत भी है।
तीसरी बात -- हमारी जमगणना की नीति विघटनवादी है -- क्या हम उसे संघटनवादी नही बना सकते -- मसलन वे पूछते हैं आपकी मातृभाषा क्या है और इस प्रकार एक मराठी या मैथिली या भोजपुरी बोलनेवालेको हिंदी बोलनेवालोंसे अलग कर देते हैं। इसकी बजाय वे पूछें कि आप भारत की कौन-कौनसी भाषा जानते हैं -- तो हम गर्वसे अपनी जानकारी की सभी भाषाएँ गिना सकते हैं और उनकी पढाई कर खुश हो सकते हैं।
पाठ 3
परखिये अपना संस्कृत का ज्ञान और यहाँ लिख डालिये सही अर्थ इन शब्दोंके --
भव, संभव, वैभव, अनुभव, पराभव, उद्भव,
भाव, प्रभाव, आविर्भाव, अभाव, दुर्भाव, स्वभाव, अहंभाव
पाठ 4
मन्मथारि या नामाचे संबोधन आहे मन्मथारे (खालील श्लोकात). ते वाचून हा पाठ लिहावा वाटला.
मन्मथारि -- मन्मथाचा (मदनाचा) अरि (शत्रू) अर्थात शंकर. याचप्रमाणे अरि ने शेवट होणारी इतर नावे आहेत -- मुरारि
(कृष्ण), त्रिपुरारि (शंकर), मदनारि। या सर्वांचा धावा करायचा झाल्यास संबोधनामधे रि चा रे होतो, उदा श्रीकृष्ण गोविंद हरे,
मुरारे ..
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