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मंगलवार, 24 मार्च 2015

27 नक्षत्रों के वेदमंत्र

27 नक्षत्रों के वेदमंत्र
वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27 नक्षत्रों के वेद मंत्र निम्नलिखित हैं :
01-अश्विनी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अश्विनातेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम् ।वाचेन्द्रो
बलेनेन्द्रायदधुरिन्द्रियम्।।
यजु0 20-80
ॐ अश्विभ्यां नम: ।
02-भरणी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ यमायत्वामखायत्वा सूर्य्यस्यत्वातपसे देवस्यत्वा सवितामध्वानक्तु पृथ्वियाःस गुँ स्पृशस्पाहि ।अर्चिरसिशोचिरसि तपोसि।।
यजु037-11
ॐयमाय नमः।
03-कृतिका नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अयमग्निः सहस्रिणो वाजस्य शतिनस्पतिः। मूर्द्धा कवीरयीणाम्। ।
यजु015-21
ॐ अग्नये नम: ।
04-रोहिणी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐब्रह्मजज्ञानंप्रथमम्पुरस्ताद्विसीमत: सुरुचोव्वेनआव:। सबुध्न्या उपमाअस्यविष्ठाः सतश्चयोनिमतश्चव्विवः।।
यजु013-03
ॐ ब्रह्मणे नम: ।
05-मृगशिरा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ सोमोधेनु गुँ सोमोअर्वन्तमाशु गुँ सोमोवीरङ्कर्मण्यन्ददाति।
सादन्न्यम्विदत्थ्य गुँ सभेयम्पितृश्रवणंयोददाशदस्मै।।
यजु0 34-21
ॐ चन्द्रमसे नम: ।
06-आर्द्रा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमस्तेरुद्रमन्यवSउतोत इषवेनम:बाहुभ्यामुततेनम: ।।
यजु016-01
ॐ रुद्राय नम: ।
07-पुनर्वसु नक्षत्र वेद मंत्र
ॐअदितिर्द्योरदितिरन्तरिक्षमदितिर्मातासपितासपुत्र:विश्वेदेवा अदिति:पञ्चजनाअदितिर्जातमदितिर्ज्जनित्वम् ।।
यजु0 25-23
ॐ अदित्यैनम: ।
08-पुष्य नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ बृहस्पतेअतियदर्योअर्हा द्युमद्विभातिक्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्छवसॠतप्रजात तदस्मासुद्रविणंधेहि चित्रम्।।
यजु0 26-03
ॐ बृहस्पतये नम: ।
09-अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमोSस्तुसर्पेभ्यो येकेचपृथिवीमनु।येअन्तरिक्षेयेदेवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ।।
ॐ सर्पेभ्यो नम:।
10-मघा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्यः स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: ।
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्यः स्वधानम:अक्षन्पितरोSमीमदन्त
पितरोतितृपन्तपितरःपितर:शुन्धध्वम्।।
यजु019-36
ॐ पितृभ्यो नम: ।
11-पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ भगप्रणेतर्भगसत्यराधो भगे मान्धियमुदवाददन्न: ।
भगप्रनोजनयगोभिरश्वैर्भगप्रनृभिर्नृवन्त: स्याम।।
यजु0 34-36
ॐ भगाय नम: ।
12-उत्तराफालगुनी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ दैव्या वद्ध्वर्ज्जूआगत गुँ रथेन सूर्य्यत्वचा ।
मध्वायज्ञ गुँ समञ्जाथे।। तंप्रक्त्नथा यंव्वेनश्चित्रं देवानाम्।।
यजु0 33-33
ॐ अर्यम्णे नम: ।
13-हस्त नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ विभ्राड्बृहत्पिवतु सोम्यं मध्वायुर्द्दधद्यज्ञपतावविर्हुतम्।
वातजूतोयोअभिरक्षतित्मना प्रजाःपुपोषपुरुधाव्विराजति ।
यजु0 33-30
ॐ सूर्याय नम: ।
14-चित्रा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ त्वष्टातुरीपोअद्धुत इन्द्राग्नी पुष्टिवर्द्धना ।
द्विपदाच्छ्न्दइन्द्रियमुक्षागौर्न्नव्वयोदधु: ।
यजु0 21-20
त्वष्ट्रेनम:।
15-स्वाती नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ वायोरग्ग्रेगायज्ञप्प्रीःसाकङ्गन्मनसायज्ञम्। शिवोनियुद्भिः शिवाभिः।।
यजु0 27-31
ॐ वायवे नम: ।
16-विशाखा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ इन्द्रान्गी आगत गुँ सुतं गीर्भिर्न्नभो वरेण्यम् ।
अस्यपातन्घियेषिता ।।
यजु0 7-31
ॐ इन्द्रान्गीभ्यां नम: ।
17-अनुराधा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमो मित्रस्यवरुणस्य चक्षसे महोदेवायतदृत
गुँ सपर्यत । दूरेदृशेदेव जाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्यायश
गुँ सत ।
यजु0 4-35
ॐ मित्राय नम: ।
18-ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र गुँ हवे हवे सुहव गुँ शूरमिन्द्रम् । व्हयामि शक्रंपुरुहूतमिन्द्र गुँ स्वस्तिनोमघवा धात्विन्द्र: । ।
यजु0 20- 50
ॐ इन्द्राय नम: ।
19-मूल नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ मातेवपुत्रम्पृथिवी पुरीष्यमग्नि गुँ स्वयोनावभारुखा। तांविश्वैदेवैर्ॠतुभि: संविदान: प्रजापतिर्विश्वकर्मा विमुञ्चतु ।।
यजु0 12-61
ॐ निर्ॠतये नम: ।
20-पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अपाघमपकिल्विषम पकृत्यामपोरप:। अपामार्गत्वमस्मद
पदु: स्वपन्य गुँ सुव।।
यजु0 35-11
ॐ अद्भ्यो नम: ।
21-उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ विश्वे अद्य मरुतो विश्वSऊती विश्वेभवन्त्वग्नय: समिद्धा:।
विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वमस्तु द्रविणं वाजोअस्मे ।।
यजु0 18-31
ॐविश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
22-श्रवण नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ विष्णोरराटमसिव्विष्णोः श्नप्त्रेस्त्थोव्विष्णोःस्यूरसिव्विष्णोर्ध्रुवोसि । व्वैष्णवमसिव्विष्णवेत्त्वा ।
यजु0 5-21
ॐ विष्णवे नम: ।
23-धनिष्ठा नक्षत्र वेदमंत्र
ॐ वसो:पवित्रमसि शतधारंवसो: पवित्रमसि सहस्रधारम् ।
देवस्त्वा सविता पुनातुव्वसो: पवित्रेणशतधारेणसुप्वा कामधुक्ष: ।
यजु0 1-3
ॐ वसुभ्यो नम: ।
24-शतभिषा नक्षत्र वेदमंत्र
ॐवरुणस्योत्तम्भनमसिव्वरुणस्यस्कम्भसर्ज्जनीस्थोव्वरुस्यॠतसदन्यसि व्वरुणस्यॠतमदनमसिव्वरुणस्यॠतसदनमासीद।
यजु0 4-36
ॐ वरुणाय नम: ।
25-पूर्वभाद्रपद नक्षत्र वेदमंत्र
ॐ उतनोहिर्बुध्न्यः श्रृणोत्वज एकपात्पृथिवी समुद्र: विश्वेदेवा
ॠता वृधो हुवानास्तुतामंत्राः कविशस्त्ता अवन्तु ।।
यजु034-53
ॐ अजैकपदे नम:।
26-उत्तरभाद्रपद नक्षत्र वेदमंत्र
ॐ शिवोनामासिस्वधितिस्ते पिता नमस्तेSस्तुमामाहि गुँ सीः
निवर्त्तयाम्यायुषेSन्नाद्याय प्रजननायरायस्पोषाय  सुप्रजास्त्वायसुवीर्याय।
यजु0 3-63
ॐ अहिर्बुध्न्याय नम: ।
27-रेवती नक्षत्र वेदमंत्र
ॐ पूषन्तवव्रतेवयन्नरिष्येम कदाचन । स्तोतारस्त्तइहस्मसि।।
यजु0 34-41
ॐ पूष्णे नम: ।

बुधवार, 18 मार्च 2015

संस्कृत पाठ, नदी,सर्व (तीन लिंगोंमें)

संस्कृत पाठ 
पाठ 1 -- 26-05-15
दश वाक्यानि
अ) अद्य प्रयत्नपूर्वकं संस्कृतं लिखामि
आ) किन्तु बहूनि शब्दानि न लिखामि।
इ) श्वः अपि किंचित् अधिकं एव लेखिष्यामि।
ई) श्रुणोतु भवान्
उ) एदानीं मम दूरभाषी बहुधा न चलति।

ऊ) तर्हि कथं सम्पर्खं करिष्यामि ।
ए) किं भवान् खादितवान् ।
ऐ) --- सप्र वाक्यानि सहजं एव लिखितवती।
ओ) किन्तु अधुना एकादश घटिका जातः
औ) अतः अधुना भवान्  विश्रामं करोतु ।

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प्रथमा विभक्तिः

नदी नद्यौ नद्यः

द्वितीया विभक्तिः

नदीम् नद्यौ नदीः

तृतीया विभक्तिः

नद्या नदीभ्याम् नदीभिः

चतुर्थी विभक्तिः

नद्यै नदीभ्याम् नदीभ्यः

पञ्चमी विभक्तिः

नद्याः नदीभ्याम् नदीभ्यः

षष्ठी विभक्तिः

नद्याः नद्योः नदीनाम्

सप्तमी विभक्तिः

नद्याम् नद्योः नदीषु

संबोधन

हे नदि हे नद्यौ हे नद्यः

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स्त्रीलिंग


प्रथमा 
सर्वा
sarvaa
सर्वे
sarve
सर्वाः
sarvaaH

द्वितीया
सर्वाम्
sarvaam
सर्वे
sarve
सर्वाः
sarvaaH

तृतीया
सर्वया
sarvayaa
सर्वाभ्याम्
sarvaabhyaam
सर्वाभिः
sarvaabhiH

चर्तुथी 
सर्वसै
sarvasai
सर्वाभ्याम्
sarvaabhyaam
सर्वाभ्यः
sarvaabhyaH

पन्चमी 
सर्वस्याः
sarvasyaaH
सर्वाभ्याम्
sarvaabhyaam
सर्वाभ्यः
sarvaabhyaH

षष्ठी
सर्वस्याः
sarvasyaaH
सर्वयोः
sarvayoH
सर्वासाम्
sarvaasaam

सप्तमी
सर्वस्याम्
sarvasyaam
सर्वयोः
sarvayoH
सर्वासु
sarvaasu

सम्बोधन 
सर्वे
sarve
सर्वे
sarve
सर्वाः
sarvaaH


पुल्लिंग
प्रथमासर्वःसर्वौसर्वे
संबोधनप्रथमाहे सर्वहे सर्वौहे सर्वे
द्वितीयासर्वम्सर्वौसर्वान्
तृतीयासर्वेणसर्वाभ्याम्सर्वैः
चतुर्थीसर्वस्मैसर्वाभ्याम्सर्वेभ्यः
पञ्चमीसर्वस्मात्सर्वाभ्याम्सर्वेभ्यः
षष्ठीसर्वस्यसर्वयोःसर्वेषाम्
सप्तमीसर्वस्मिन्सर्वयोःसर्वेषु


(दकारान्त सर्वनाम नपुंलिङ्ग - dakaaraanta sarvanaama napu.nliN^ga)

विभक्ति
Singular
एकवचन - ekavachana
Dual
द्विवचन - dvivachana
Plural
बहुवचन - bahuvachana

प्रथमा
सर्वम्
sarvam
सर्वे
sarve
सर्वाणि
sarvaaNi

द्वितीया
सर्वम्
sarvam
सर्वे
sarve
सर्वाणि
sarvaaNi

तृतीया 
सर्वेण
sarveNa
सर्वाभ्याम्
sarvaabhyaam
सर्वै
sarvai

चर्तुथी 
सर्वेस्मै
sarvasmai
सर्वाभ्याम्
sarvaabhyaam
सर्वेभ्यः
sarvebhyaH

पन्चमी 
सर्वस्मात्
sarvasmaat
सर्वाभ्याम्
sarvaabhyaam
सर्वेभ्यः
sarvebhyaH

षष्ठी 
सर्वस्य
sarvasya
सर्वयोः
sarvayoH
सर्वेषाम्
sarveShaam

सप्तमी
सर्वस्मिन्
sarvasmin
सर्वयोः
sarvayoH
सर्वेषु
sarveShu

सम्बोधन 
सर्व
sarva
सर्वौ
sarvau
सर्वाणि
sarvaaNi





बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

राम जन्म ग्रहस्थिती

राम जन्म ग्रहस्थिती

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

गीता किसके लिये

 24 Feb 2007
गीता किसके लिये?

     गीता इतना पुरातन ग्रंथ है कि आम आदमी को गलतफहमी हो सकती है कि यह केवल बुढापे में परमात्मा का स्मरण करवाने के लिये उपयुक्त है। लेकिन मैंकहती हूँ कि यह बडी व्यावहारिक और उपयोगी विषयवस्तु है जो हर उमर में और हर मौके पर सही- गलत की पहचान करवानी है।
     यदि आपके सामने भगवद्गीता पर एक अच्छी पुस्तक रखी गई और आप सोच रहे है, इसे पढूँ या ना पढूँ? या चॅनेल सर्फिंग में यही प्रोग्राम आपके सामने आया और आपके मन में प्रश्न आया- इसे देखूँ या न देखूँ? क्या यह मेरे लिये relevant हैं? एक लीडर के लिये, जो लीडरी करना चाहता है और अच्छे- बुरे का विचार किये बगैर अपने लिये धन और सुखोपभोग भी जुटाना चाहता है। क्या गीता में उसके लिये भी tips हैं- जरुर हैं। क्यों कि गीता में लीडर के लिये tips हैं। लेकिन उनका पालन अल्प कालीन रहेगा- शाश्वत नही, वह दिखावा होगा यथार्थनही। क्यों कि  कोई भी लीडर अपने followers के सामने अपने अनैतिक चरित्र का आदर्श नही रह सकता।वैसे followers उसके नही रहेंगे। तो थोडे ही समय में ऐसे लीडर से गीता छूट जायगी।
     लीडर का पहला गुण है- कि औरों से wavelength जुटी रहे- communication skills हों, motivate कर सकता हो।
     गीता का सारांश देखना हो तो इस वाक्य में देखा जा सकता है।तस्मात् योगी भवार्जुन। यह एक आदेश है।लेकिन केवल आदेश देकर कृष्ण चुप नही बैठते। बारीकियाँ समझाकर बताते हैं कि योगी के लक्षण क्या हैं औरयोगी की सिध्दी के लिये क्या क्या करना है कैसे करना है।
     छठवां अध्याय जो कि आत्मसंयम योग कहा गया है, यह एक लम्बी यात्रा को आनन्ददायी बनाने वाली कविता है।
     जो कर्मक फल पर आश्रित नही है, वह योगी है और वही संन्यासी है।
     गीता में बार बार कहा है- संन्यासी क्या है? वह नही जो सबकुछ छोड छाड कर कहीं दूर गिरा कंदराओं मे भटकने के लिये निकल
पडा। बल्कि वह जो दुगुने उत्साह से काम में लग गया।लेकिन उत्साह भी कैसा? जिसमें काम ही सर्वोपरि है- फल की आकांक्षा नही।
     एक बार अर्जुन को ये तो कह दिया कि कर्मपर ही तेरा अधिकार है, फल पर नही- यह भी डाँट डपर कर कह दिया कि खबरदार फलेच्छा न रखना।लेकिन अब इसका यश गा रहे हैं। जो कर्मफल से परे हो गया, वह योगी हो गया- मुदित हो गया, आनंदित हो गया।
     मैंने अक्सर देखा है और अपने घर परिवार में बच्चो को भी समझाया कि परीक्षा में नंबर लाना यही सबका ध्येय है। विषय चाहे समझ में आये या न आये। मैं बच्चों से कहती- तुम्हें परीक्षा में नंबर आयें या नं आयें, मैं पहले पूछूँगी विषय का ज्ञान आया या नही? मेरी परीक्षा में पास होकर दिखाओ तो मानूँ।कोई विषय उठाओ और देखो कि यह कितनी गहराई तक तुम्हें आया।
     एक प्रसंग है तैराकी का। कितने लोग तैरने में expert होते हैं। पानी में डुबकी लगाते हैं। पानी के अंदर जाते ही थोडासा हल्कापन महसूस करते हैं। जितना तय किया था, उतना तैरकर बाहर आ जाते हैं।या जिन देशों में जिन घरों में टब में पानी भर उसी में नहाने का रिवाज है, वे वही करते हैं। लेकिन आर्किमिडिज एक वैज्ञानिक था- नहाने के लिये टब में घुसा तो इधर थोडा पानी छलक कर गिरा, उधर देह में कुछ हलकापन महसूस हुआ और उसका दिमाग जो सजग था- उसने खट् से पकड लिया- यह जो पानी बाहर गिरा, इसका और मेरे शरीर के वजन घटने का कोई संबंध है। वह टब से निकलकर नंगा ही सडकों पर दौडा गया- युरेका , युरेका- अर्थात् मैंने पा लिया, मैंने पा लिया- क्या पा लिया? रहस्य पा लिया। कैसा रहस्य? तो यह जो दिमाग की सजगता है, हर क्षण के कार्यकलाप को पकडना, समझना, छोडना और अगले क्षण     के लिये तत्पर हो जाना यह कहाँ से आती है?  यह तब आती है यदि हम कर्म में पूरी तरह जुटे हैं, फिर भी कर्मफल पर आश्रित नही हों।
     यहाँ बडी विचारणीय बात है,क्या हमें goal focussed नही होना है? यदि कर्मफल के प्रति मोह नही रखना है तो उस लक्ष्य पर /goal पर हमारी आँख नही रहेगी।
      तो गीता की सीख यह नही है। goal पर focus रखना है- उसी के लिये कर्म करने हैं और कुशलता के साथ करने हैं।तो छोडना किसे है-? छोडना है उस सुख- दुख को जो जय- पराजय से स्तुती- निंदा से, यश- अपयश से आते हैं।
      मैं अपने आनंद के लिये उस जय- या यश पर आश्रित नही हूँ ,बल्कि मेरा आनंद इस बात से आता है कि मैं काम कर रही हूँ और अच्छी तरह से कर रही हूँ। लक्ष्य पर निगाह रख कर रही हूँ। कुशलता पूर्वक, सतर्कता पूर्वक, तन्मयता पूर्वक। उस कार्य को करते करते मेरी इन्द्रियाँ एक लय में निबध्द हो जायें।
      एक प्रसंग मुझे याद आता है कि मैं अपने बेटे को कार चलाना सिखा रही थी। उसे अच्छी खाली प्रॅक्टिस हो गई। स्पीड बढाना, घटाना, ब्रेक लगाना, ओव्हरटेक, रिवर्स।RTO में जाकर टेस्ट देनी थी तो मैंने समझाया - देखो, टेस्ट जाने से पहले मेरी टेस्ट में पास होना पडेगा। क्या है वह टेस्ट? कि जब गाडी चलाओ, तब दिमाग से नही बल्कि शरीर के अवयों से गाडी चलनी चाहिये। जब आँख के कोने से दिख जाये कि कोई रास्ते में आनेवाला है तो यह संवेदना या ज्ञान पहले दिमाग में पहुँचता है या पहले पैर ब्रेक दबाने के लिये तैयार हो जाते हैं? यदि पैर पहले तैयार हैं तो टेस्ट मे पास। यदि कान्शख दिमाग के आदेश पर पैरों को ब्रेक लगाना पडे तो इसका अर्थ है कि अभी और प्रॅक्टिस आवश्यक है।

अमानिक्नमदाम्भिमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मनविनिग्रहः। ७
इन्द्रियार्थेषु.........
                                      दर्शनम।८
मयिचान्न्य योगेन
                                       जनसंसदि
अध्यात्म               तत्वज्ञानार्थ......
                                        यदतोन्यथा।१३

मनकी अहिंसा भावना इन्द्रियों के माध्यम से प्रगट होती है। अनः जिसके मनमे अहिंसा है उसका बोलना मधुर, हस्तस्पर्श सुखकर, दृष्टि कृपावंत हो जाती है।
      भगवद्गीता में संकल्पनाओं की प्रस्तुति है, उनके एक सुंदरसंकल्पना है विभूतियोग। केषु केषुच भावेषु चिन्त्यो सि? अर्जुन पूछता है, हे कृष्ण, मैं तुन्हें किस किस रूप में देखूँ? उस अपने सुंदर आनंददायी स्वरूप के विषय में तुम स्वयं बताओ।और भगवान भी जो इतनी देर से मैं निर्गुण हूँ, निराकार हूँ, परब्रह्म हूँ इत्यादि कहे जा रहे थे, वो सारे सिध्दान्त अलग रखकर उन्होंने अपनी पहचान के संकेत बता दिये।
     यह कहना कि सामान्य व्यक्ति भगवान नही बन सकता- इस सिध्दान्त को ही भगवान ने धता बता दिया।हर व्यक्ति भगवान के समकक्ष बन सकता है, अपने अस्तित्व के माध्यम से इतर जनों को भगवान के होने की प्रचीती करा सकता है। सामान्य मनुष्य के मन को दिव्यता का शिखर दिखाकर उसे रास्ता बता दिया- एक चॅलेंज के साथ या एक शाबासी के साथ- कि देख लो, वह जो शिखर है, वह गुण मेरा परिचायक है उसे प्राप्त करो और मेरे समकक्ष हो जाओ।
     हर मनुष्य के मन में एक ललक होती है, कुछ कर गुजरने की ऐसे कर्तृत्ववान विभूतियोग है- यह हमें गुणों की परख भी दिखाता है और उन गुणों का निर्वाह करने के लिये भी प्रेरणा देता है।

शनिवार, 17 जनवरी 2015

Usha Pathak Correspondence



Letter written for shooting of TV serial on 10 Jan 2015


                                                                                                                        Dt

To
The Deputy Conservator of forests
Social Forestry and Parks Division
Ponda- Goa
Wish you a very happy and prosperous new year.

Sub: Screening of TV Serial in a Park at Alto Betim behind Pundalik Nagar, Parvari.

Dear Sir,
   
         Panaji DD, Kaushalam Trust and Sanskrit Bharati are jointly conducting a serial “Sanskrit Tumchi Amachi”. Which is telecast on the last Tuesday of every month at 5.30 pm- 6 pm.
        We propose to conduct recording of episode produced by specially gifted students of Sanjay School, Porvorim in the park at Alto Betim. Because it is close to the Sanjay School.
        Please note that there will be no harm or any tree cutting activity etc will be done. The tentative dates for recording will be in the month of Jan 2015 1st or 2nd Week.
       This is for your information please. For any querries you may please contact Mrs. Usha Pathak, Chief Coordinator of this Serial on 9860015853.


    Thanking you,


      Usha Pathak
(Member, Kaushalam Trust)
-----

धारानावाहिके बाबत विविन्न संस्थांना दिलेली माहिती

पणजी, गोवा
दि.


प्रति,
माननीय मुख्याध्यापिका/मुख्याध्यापक



विषय- पणजी दूरदर्शनवर प्रसारित होणा-या संस्कृत मालिकेबद्दल!

महोदया/महोदय,

     आपल्याला कळविण्यांस आम्हाला अत्यंत आनंद होत आहे की, कौशलम ट्रस्ट, संस्कृत भारती, गोवा व पणजी दूरदर्शन, गोवा या संस्थांच्या सहकार्याने आम्ही पणजी दूरदर्शनवर केवळ संस्कृत भाषेला समर्पित अशी १२ भागांची मालिका प्रसारित करीत आहोत. मालिकेचे शीर्षक आहे, “संस्कृत! तुमची-आमची!”
     ही मालिका दि. २४ जून २०१४ पासून प्रसारीत होते आहे. मालिकेचा प्रत्येक भाग (Episode) ३० मि. चा असून त्यांत ३ विभाग (Segment’s) असतील. त्यातील पहिल्या २ विभागात (Segment’s मध्ये) शालेय विद्यार्थ्यांचा सहभाग असणार आहे. या मालिकेतील सर्व कार्यक्रम संस्कृत भाषेतच सादर केले जातील.
     आपली संस्था अशाप्रकारच्या सामाजिक, सांस्कृतिक व विधायक कार्यामध्ये नेहमीच अग्रेसर असते, हे आम्हाला ज्ञात आहे. तसेच संस्कृत भाषेच्या प्रसाराचे कार्यही आपण वेगवेगळ्या कार्यक्रमांद्वारे करीत असता, हे आम्ही जाणून आहोत.
     वरील मालिकेसाठी व प्रकल्पासाठी आम्हाला आपल्या संस्थेच्या सहकार्याची आवश्यकता आहे. आपल्या /आपले सहकारी
                     यांच्या आम्ही संपर्कात असून मालिकेच्या         महिन्यांत प्रसारित होणा-या      episode ची संपूर्ण जबाबदारी त्यांना दिली आहे. या episode साठी व इतरही कार्यक्रमांसाठी आम्हाला आपल्या संस्थेच्या संस्कृत पारंगत अध्यापकांचे व विद्यार्थ्यांचे सहकार्य लागणार आहे.
    आपण आमच्या या विनंतीचा जरुर विचार करावा व आम्हाला सहकार्य करावे, ही नम्र विनंती!

    आपली

( सौ. उषा पाठक)
सदस्य, कौशलम ट्रस्ट
दूर. क्र.-९८६००१५८५३

 



         

बुधवार, 3 दिसंबर 2014

भवान् भवन्तौ भवन्तः.

भवान् भवन्तौ भवन्तः
भवन्तम् भवन्तौ भवतः. 
भवता भवद्‍भ्यां भवद्भिः. 
भवते भवद्भ्यां भवद्‍भ्यः. 
भवतः भवद्‍भ्यां भवद्‍भ्यः. 
भवतः भवतोः भवताम्. 
भवति भवतोः भवत्सु. 
हेभवन् हेभवन्तौ हेभवन्तः. 

भवान् पुस्तकं अपठत्। भवान् पुस्तकं पठितवान्।

अत्रि त्रि भवत् शब्दः स्त्रील्लिङ्गः

एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्

प्रथमा . भवती भवत्यौ भवत्यः

संबोधन . हे भवती हे भवत्यौ हे भवत्यः

द्वितीया . भवतीं भवत्यौ भवतीः

तृतीया . भवत्या भवतीभ्यां भवतीभिः

चतुर्थी . भवत्यै भवतीभ्यां भवतीभ्यः

पञ्चमी . भवत्याः भवतीभ्यां भवतीभ्यः

षष्ठी . भवत्याः भवत्योः भवतीनां

सप्तमी . भवत्यां भवत्योः भवतीषु ।


भवत् शब्दः नपुंसकलिङ्गः

एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्

प्रथमा . भवत् भवती भवन्ति

सम्बोधन . हे भवत् हे भवती हे भवन्ति

द्वितीया . भवत् भवती भवन्ति

तृतीया . भवता भवद्भ्यां भवद्भिः

चतुर्थी . भवते भवद्भ्यां भवद्भ्यः

पञ्चमी . भवतः भवद्भ्यां भवद्भ्यः

षष्ठी . भवतः भवतोः भवतां

सप्तमी . भवति भवतोः भवत्सु ।