गुरुवार, 3 नवंबर 2016

पठामि संस्कृतम् भाग-३

पठामि संस्कृतम् भाग-

रेडियो मधुबन सुननेवालोंको लीना मेहेंदळे का अभिवादन। 90.4 FM पर मैं लेकर आई हूँ आपका पसंदीदा प्रोग्राम पठामि संस्कृतम्। आईये आज हम कुछ प्रश्न और उनके उत्तरो से आरंभ करते है। सबसे पहला हम किसीसे पूछते है कि तुम्हारा नाम क्या है? तो संस्कृत मे हम कहेंगे-

तव नाम किम् अस्ति
या
नाम किमस्ति तव
या
किम् नाम अस्ति तव
या
किमस्ति तव नाम
या
अस्ति किम् तव नाम
यहाँ, किम् अस्ति= किमस्ति -- यह संधि है।

तव नाम किम् अस्ति
इसे हिंदी में पूछते हैं -- तुम्हारा नाम क्या है? लेकिन कई बार हम शब्दोंका उलटफेर भी कर लेते हैं। जैसे हम
पूछ सकते है 

नाम क्या है तुम्हारा? --    नाम किमस्ति तव
या क्या नाम है तुम्हारा -- किम् नाम अस्ति तव
या क्या है नाम तुम्हारा -- किमस्ति तव नाम
या है क्या तुम्हारा नाम -- अस्ति किम् तव नाम।
किम् अस्ति= किमस्ति

तो देखा आपने ये है संस्कृत और हिंदी भाषा की खूबी की एक ही वाक्य के चार शब्द थे लेकिन हमने उन शब्दोंको चाहे जैसा भी उलट फेर कर दिया हो उससे ना तो अर्थ बदला और ना ही भाषा की सुंदरता में कोई कमी आई। लेकिन हाँ नाटकियता में काफी अंतर पड जाता है। इसिलिये संस्कृत में जब हमे नाटक या पद्यावली इत्यादि लिखने को तो हम इस खूबी का उपयोग कर लेते है कि हम शब्दोंका उलटफेर भी अगर करेंगे तो भी वाक्यों का अर्थ नही बदल सकता है।

अब चलिये हम ऐसे ६ शब्दोंको दोहराते है जो संस्कृत में काफी उपयोग में आते है और हम उन्हें अपने पहले पाठों में समझ दे चुके हैं। ये ६ शब्द हैं-
मैं = अहं
मेरा = मम
मुझे = माम् / मा
तू = त्वं
तेरा = तव
तुझे = त्वाम् / त्वा

तो ये जो हमारे संस्कृत के जो ६ शब्द है या ८ शब्द कह लिजिए इनका प्रयोग अगर हम सीख ले तो, चलो हमारा ऐसे ही १५-२० प्रतिशत काम तो हो ही गया। है ना। और जो पहली प्रार्थना जो हमने पढी थी- त्वमेव माता पिता त्वमेव तो उसमे हमने त्वम् शब्द का प्रयोग सिखा था जैसे-
त्वम् मम माता
त्वम् मम पिता
त्वम् मम सर्वम्
या माम् सत्यम् गमय

तो यहाँ पर हर जगह हमने त्वम् अर्थात तुम शब्द का प्रयोग सिखा है। 

अब इसी प्रश्नोत्तर को आगे बढाते हुए कुछ और देख सखते है। कोई मुझसे पूछेगा, तव नाम किम अस्ति? तो मैं उत्तर दूँगी, मम नाम लीना अस्ति|, या मैं कह सकती हूँ, मम नाम लीना इति| और अपरिचित से नाम पूँछने के बाद उसे हम कुछ और भी प्रश्न पूछ लेते है जैसे 
तुम क्या करते हो, त्वं किं करोसि? 
उत्तर मिलता है अहं व्यापारकार्यं करोमि| मैं व्यापार का काम करता हूँ। 
प्रश्न हैं त्वं कुत्र वससि? तुम कहाँ रहते हो 
उत्तर मिलता है अहं आबू ग्रामे वसामि| मै आबू गाव में रहता हूँ 
फिर पहला आदमी कहता है तव आबू ग्रामः शोभनः अस्ति| कितना सीधा अर्थ है तुम्हारा आबू गाव जो है वो बहूत सुंदर है शोभिवंत है 
और सुननेवाला कहता है धन्यवादम् करोमि| मैं आपका धन्यवाद करता हूँ 

तो बस ऐसे ही छोटे-छोटे सरल शब्दोंके साथ, छोटे-छोटे वाक्योंके साथ हमारी पढाई आगे बढती चलेगी। और अब एक बहूत ही सुंदर श्लोक सुनते है जो की गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है रामचंद्रजी के लिये गोस्वामी कहते है-
श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणं।
नवकंज लोचन कंजमुख
करकंज पद कंजारुणम्।।
अर्थात हे मेरे मन तु कृपालु श्री रामचंद्र जी को भज। हे मेरे मन तुम भजन करो कृपालु ऐसे रामचंद्रजी का। और इसके आगे वर्णन है- हरण भवभय दारुणं। वो हमे ये जो संसार है भव इसमे जो कई तरहके भय,विघ्न आते रहते है  हमे दारुण भय सताता है इसका हरण श्री रामचंद्रजी बडी कृपासे करते है। 

आगे श्री रामचंद्रजी की सुंदरता का वर्णन करने के लिए तुलसीदासजीने एक शब्द का प्रयोग किया है कंजकंज का अर्थ होता है कमल। सुंदरता की उपमा कमल से दी जाती है। तो तुलसीदासजी बताते है श्री रामचंद्रजी कैसे है, कितने सुंदर है तो कहते है-- नव कंज लोचन -- इनके लोचन जो है वो नये खिले हुए कमल के समान सुंदर है। मुख भी उनका कमल की तरह सुंदर है। करकंज -- हाथ भी कमल की तरह सुंदर है और पद कंजारुणम् मतलब उनके पाँव भी लालिमा दिये हुए कमल की तरह सुंदर है। तो मै ये फिरसे पढती हूँ-
श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणं।
नवकंज लोचन कंजमुख
करकंज पद कंजारुणम्।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. विना वेदं विना गीता,विना रामायणीं कथाम् |
    विना कवि कवि कालिदासे भारतं भारतं न हि ||

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